
क्या आपने कभी देखा है कि जब कोई लड़की किसी बस या ट्रैन में भीड़ से लबालब किसी पब्लिक ट्रांसपोर्ट में बैठती है तो कहीं से एक मचलता धीरे से उसकी ओर आता है ओर उसे छूने कि कोशिश करता है या छू भी लेते है। आपने देखा होगा कि जब आप किसी ऐसी जगह सफर करती हैं तो कोई अजनबी आपको बड़ी अजीव नज़रों से देखता या घूरता है.
कहीं किसी party या marriage function में किसी मजाक भरी बातें जैसे कह रही हों चलो कहीं कोने में जाकर बात करते हैं. और कोई अपने मचलते अरमानों को पूरा करना चाहता हो.
वो हाथ आपकी तरफ ऐसे आता है जैसे मानो आपको को दबोच लेना चाहता हो. वो आँखे आपको ऐसे घूरती हैं मानो जैसे आपके पुरे बदन पर कहीं कोई कपडा ही न हो. उस समय आप को लगता होगा कि ‘i wanted to shout loud but could not scream’ जैसे उस नज़रों के आप जागीर हो.
मैं जानती हूँ कि उस समय आप आप उन हाथों को तोड़ डालना चाहती हो, या उन अजीव हवस भरी आँखों को फोड़ देना चाहती हो, मगर कहीं आपके ही अंदर एक अंदुरनी दबाब बन जाता है ओर आप चुप हो जाती हो, खामोश हो जाती हो.
कहीं कोई अधेड़ उम्र का आदमी जो आपको बेटी कह कर आलिंगन करता है और आप भी उसके हाथ कि सहलाहट (Physically Harassment in public) को समझ लेती हैं फिर एक झूटी मुस्कराहट देखर भूलने कि कोशिश करती हैं.
कभी जब आप किसी ऑटो रिक्शा या बस में ड्राइवर के पीछे वाली सीट पर बैठी हों और वो आपको अपने mirror में बचती निगाहों से आपके सीने पर नज़र डालता हो.
आपके ऑफिस में बिना किसी बात के छोटी-छोटी बातों को बहुत देर तक समझाते हुए आपके सीनियर कि आँखे कभी आपके होंठ पर, तो कभी आपके सीने पर से फिसलती हों.
एक हाथ जो आपकी गोद में लिए हुए छोटे बच्चों से बात करने के बहाने से आपके बदन को छूने कि नाकाम कोशिश करता हो.
ये सब वो छोटी छोटी बातें है जो हम लड़कियां इग्नोर करती आई हैं
ये वही परिस्थिति है जिसमे हमने चिल्लाना तो चाहा मगर चिल्ला न पाएं.
यहाँ चिल्लाना आपकी चाहने की बात नहीं है बल्कि यहाँ आपकी या हम जैसी लड़कियों की इज़्ज़त की बात है.
हमारे ख़ामोशी ये सब चीज़ें रूकती तो जरूर खामोश होना चाहिए मगर, यहाँ चिल्लाने बदसुलूकी नहीं बल्कि जरुरत है.
आपका चिल्लाना आने वाली पीडियों का सुरक्षा कवच है.
आपके चिल्लाने से उन दरिंदों को जो सबक मिलेगा वो आने वाली पीडियों के लिए एक अहसान होगा.
इसलिए आप अपनी आवाज़ का दवाएं न बल्कि जोर से बहार निकालें.
इस भावनाशून्य समाज का ये बताना जरुरी है कि ‘मैं कोमल हूँ, कमज़ोर नहीं’.