
Navratri के चौथे दिन मां कूष्माण्डा की पूजा होती है. मान्यता है कि इन देवी की पूजा से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं. साथ ही आयु, यश, बल और आरोग्य में भी बढ़ोतरी होती है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक कूष्माण्डा माता की आठ भुजाएं होती हैं. जिसके कारण इन्हें अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है. इनके आठों हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल का फूल, अमृतपूर्ण कलश, चक्र, गदा और जपमाला होती है. वहीं माता का वाहन सिंह है. नवरात्रि में मां भगवती के सभी 9 रूपों की पूजा अलग-अलग दिन की जाती है. शारदीय नवरात्रों में चौथे दिन मां कूष्माण्डा की पूजा का भी महत्व है.
ध्यान
वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥
भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु, चाप, बाण, पदमसुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कांत कपोलां तुंग कुचाम्।
कोमलांगी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
स्तोत्र पाठ
दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।
जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहिदुःख शोक निवारिणीम्।
परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाभ्यहम्॥
कवच
हंसरै में शिर पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्।
हसलकरीं नेत्रेच, हसरौश्च ललाटकम्॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे, वाराही उत्तरे तथा,पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम।
दिगिव्दिक्षु सर्वत्रेव कूं बीजं सर्वदावतु॥
चौथे दिन देवी कूष्माण्डा की पूजा के बाद ध्यान रखें कि भगवान शंकर की पूजा जरूर करें. इसके बाद भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा एक साथ करें. इसके बाद मां कुष्मांडा को मालपुए का भोग लगाएं और भोग लगाने के बाद प्रसाद किसी ब्राह्मण को हान जरूर करें. मां की पूजा से बुद्धि में इजाफा होता है और निर्णय लेने की क्षमता विकसित होती है.