
भगवान शंकर का बड़ा भक्त था रावण
वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस दोनों ही ग्रंथों में रावण को बहुत महत्त्व दिया गया है। राक्षसी माता और ऋषि पिता की सन्तान होने के कारण सदैव दो परस्पर विरोधी तत्त्व रावण के अन्तःकरण को मथते रहते हैं। कहते हैं कि रावण लंका का तमिल राजा था। सभी ग्रंथों को छोड़कर वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण महाकाव्य में रावण का सबसे ‘प्रामाणिक’ इतिहास मिलता है।
रावण राक्षस के रूप में नहीं जन्मा था, एक ग्रन्थ के अनुसार देवि सती के श्राप एवं राक्षसी संगति के अभिमान, गलत कार्य की वजह से रावण में गुणों के साथ साथ अवगुण भरते चले गए. सती के श्राप के पहले वो ब्राह्मण था और सात्विक तरीके से तपस्या करता था। इसलिए उसने शक्ति भी बहुत तरह की प्राप्त कर ली थी. वह कई राजा महाराजाओं को पराजित करता हुआ दशग्रीव इक्ष्वाकु वंश के राजा अनरण्य के पास पहुँचा जो अयोध्या पर राज्य करते थे। उसने उन्हें भी द्वन्द युद्ध करने अथवा पराजय स्वीकार करने के लिये ललकारा। दोनों में भीषण युद्ध हुआ किन्तु ब्रह्माजी के वरदान के कारण रावण उनसे पराजित न हो सका। रावण इक्ष्वाकु वंश का अपमान और उपहास करने लगा। इससे कुपित होकर अनरण्य ने उसे शाप दिया कि तूने अपने व्यंगपूर्ण शब्दों से इक्ष्वाकु वंश का अपमान किया है, इसलिये मैं तुझे शाप देता हूँ कि महात्मा इक्ष्वाकु के इसी वंश में दशरथ-नन्दन राम का जन्म होगा जो तेरा वध करेंगे। यह कह कर राजा स्वर्ग सिधार गये।
लंकेश “रावण” का परिवार
वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण पुलस्त्य मुनि का पोता था अर्थात् उनके पुत्र विश्वश्रवा का पुत्र था। विश्वश्रवा की दो पत्नियां थी। पहली ने कुबेर को जन्म दिया और दूसरी पत्नी ने अशुभ समय में गर्भ धारण किया। इसी कारण से उसके गर्भ से रावण तथा कुम्भकर्ण जैसे क्रूर स्वभाव वाले भयंकर राक्षस उत्पन्न हुए।ऋषि विश्वश्रवा ने ऋषि भारद्वाज की पुत्री से विवाह किया था जिनसे कुबेर का जन्म हुआ। विश्वश्रवा की दूसरी पत्नी से रावण, कुंभकरण, विभीषण और सूर्पणखा पैदा हुई थी। लक्ष्मण ने सूर्पणखा की नाक काट दी थी।
लंकेश “रावण” एक कुशल राजनीतिज्ञ, सेनापति और वास्तुकला का मर्मज्ञ होने के साथ-साथ तत्व ज्ञानी तथा बहु-विद्याओं का जानकार था। उसे मायावी इसलिए कहा जाता था कि वह इंद्रजाल, तंत्र, सम्मोहन और तरह-तरह के जादू जानता था। उसके पास एक ऐसा विमान था, जो अन्य किसी के पास नहीं था। इस सभी के कारण सभी उससे भयभीत रहते थे। वाल्मीकि रामायण के अलावा पद्मपुराण, श्रीमद्भागवत पुराण, कूर्मपुराण, महाभारत, आनंद रामायण, दशावतारचरित आदि हिन्दू ग्रंथों के अलावा जैन ग्रंथों में भी उल्लेख मिलता है। भगवान रामचंद्र का विरोधी और शत्रु होने के बावजूद रावण ‘सिर्फ बुरा’ ही नहीं था। वह बुरा बना तो सचमुच में ही प्रभु श्रीराम की इच्छा से। होइए वही जो राम रचि राखा। एक बुराई आपकी सारी अच्छाइयों पर पानी फेर देती है और आप देवताओं की नजरों में भी नीचे गिर जाते हैं। रावण मे कितना ही राक्षसत्व क्यों न हो, उसके गुणों विस्मृत नहीं किया जा सकता।
रावण शंकर भगवान का बड़ा भक्त था। परन्तु ये सब होने के बाद भी रावण जहाँ दुष्ट था और पापी था, वहीं उसमें शिष्टाचार और ऊँचे आदर्श वाली मर्यादायें भी थीं। राम के वियोग में दुःखी सीता से रावण ने कहा है, “हे सीते! यदि तुम मेरे प्रति काम-भाव नहीं रखती तो मैं तुझे स्पर्श नहीं कर सकता।” शास्त्रों के अनुसार वन्ध्या, रजस्वला, अकामा आदि स्त्री को स्पर्श करने का निषेष है अतः अपने प्रति अ-कामा सीता को स्पर्श न करके रावण शास्त्रोचित मर्यादा का ही आचरण करता है।
फिर भी हम उसके कई गुणों के बारे में आपको बताते हैं .
१. महापंडित
२. शिवभक्त
३. राजनीति का ज्ञाता
४. कई शास्त्रों का रचयिता
५. अच्छा शासक
६. नया संप्रदाय
७. प्रकांड वैज्ञानिक
“रावण” के अवगुण –
विद्वान और प्रकांड पंडित होने से आप अच्छे साबित नहीं हो जाते। अच्छा होने के लिए नैतिक बल का होना जरूरी है। कर्मों का शुद्ध होना जरूरी है। शिव का परम भक्त, यम और सूर्य तक को अपना प्रताप झेलने के लिए विवश कर देने वाला, प्रकांड विद्वान, सभी जातियों को समान मानते हुए भेदभावर हित रक्ष समाज की स्थापना करने वाला रावण आज बुराई का प्रतीक माना जाता है इसलिए कि उसने दूसरे की स्त्री का हरण किया था। वाल्मीकि रावण के अधर्मी होने को उसका मुख्य अवगुण मानते हैं। उनके रामायण में रावण के वध होने पर मन्दोदरी विलाप करते हुए कहती है, “अनेक यज्ञों का विलोप करने वाले, धर्म व्यवस्थाओं को तोड़ने वाले, देव-असुर और मनुष्यों की कन्याओं का जहाँ तहाँ से हरण करने वाले! आज तू अपने इन पाप कर्मों के कारण ही वध को प्राप्त हुआ है।” तुलसीदास जी केवल उसके अहंकार को ही उसका मुख्य अवगुण बताते हैं। उन्होंने रावण को बाहरी तौर से राम से शत्रु भाव रखते हुये हृदय से उनका भक्त बताया है। तुलसीदास के अनुसार रावण सोचता है कि यदि स्वयं भगवान ने अवतार लिया है तो मैं जा कर उनसे हठपूर्वक वैर करूंगा और प्रभु के बाण के आघात से प्राण छोड़कर भव-बन्धन से मुक्त हो जाऊंगा।
लंकेश “रावण” का था नाभि में जीवन
ऐसी मान्यता है कि रावण ने अमृत्व प्राप्ति के उद्देश्य से भगवान ब्रह्मा की घोर तपस्या कर वरदान माँगा, लेकिन ब्रह्मा नेउसके इस वरदान को न मानते हुए कहा कि तुम्हारा जीवन नाभि में स्थित रहेगा। ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया की रावण की अजर-अमर रहने की इच्छा रह ही गई।यही कारण था कि जब भगवान राम से रावण का युद्ध चल रहा था तो रावण और उसकी सेना राम पर भारी पड़ने लगे थे। ऐसे में विभीषण ने राम को यह राज बताया कि रावण का जीवन उसकी नाभि में है। नाभि में ही अमृत है। तब राम ने रावण की नाभि में तीर मारा और रावण मारा गया।