
माता–पिता और बच्चों का व्यवहार अनादि अनंत है।माता-पिता से मतभेद होना कोई आश्चर्य की बात नहीं। ऐसा होता रहता है और अपने विवाहोपरांत ऐसा होना और भी सामान्य हो जाता है। इन मतभेदों को तभी सुलझाया जा सकता है जब हम और हमारे माता पिता दोनों समझदारी का परिचय दें और मतभेद सुलझाने की इच्छा रखते हों।
यदि मतभेद का कारण हमारी अपनी गलती अथवा व्यवहार है तो समय रहते यदि हमें हमारी गलती का एहसास हो जाए या कोई करा दे ,तो हम अपनी तरफ से पहल कर सकते हैं, क्षमा मांग सकते हैं ,गलती स्वीकार कर सकते हैं और मतभेद को समाप्त कर सकते हैं। इसके विपरीत यदि माता-पिता की ओर से कोई गलती है और वे भी समझदार हैं तो समय रहते ही वह अपनी ओर से प्रयास कर मतभेदों को सुलझा सकते हैं।
तीसरा पक्ष द्वारा किया मतभेद ज्यादा खतरनाक
यानी मतभेद उत्पन्न होना जितना सामान्य है मतभेद समाप्त होना भी उतना ही सामान्य ही है। लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो पाता। मतभेद केवल उसी दशा में नहीं सुलझते जब उनमें कोई तीसरा पक्ष शामिल होता है अर्थात किसी तीसरे पक्ष के द्वारा मतभेद उत्पन्न कराए गए हों और जब इनके द्वारा मतभेदों को लगातार हवा दी जाती रहे तो ऐसे में मतभेद सुलझना अत्यंत कठिन या यूं कहें कि असंभव ही होता है।
Communication Gap
माता-पिता से मतभेद भी इसी प्रकार हो जाते हैं, जहाँ कारण हमेशा एक ही रहा है-संवादहीनता यानि विचारों का सुचारू रूप से प्रवाह न हो पाना ।
जिस संवाद में प्रवाह ही ठीक नहीं है वहाँ आप अपनी बात कैसे सामने वाले व्यक्ति को समझा सकते हैं?
इसका सरल उपाय है संवाद अथवा वार्तालाप करना । यहाँ ये बात ज्यादा महत्त्व पूर्ण होती की हम जो सोच रहे हैं क्या हम वही बता भी पा रहे हैं.
अपने पेरेंट्स को मनाने की कोशिश न छोड़े.
माता पिता ने आपको जन्म दिया है तो उनसे ज्यादा स्नेह और वातसल्य कोई हो नहीं सकता है| तो ऐसे ऊपरी बनावट करके अग़र वो आपको डाँट भी देते हैं तो सुन लीजिये और दूसरे कान से निकाल दें| ऐसा करने से उन्हें अपने आप अहसास होगा की आप कितने अच्छे बच्चे हैं की चुपचाप सुन लेते हैं और वो खुद पछतावा करेंगे की उन्होंने आवेश में आकर बेवजह डाँट दिया| दूसरा अगर आपको कोई बात मनवानी है तो बेशर्म बन जाइये और तरह तरह के प्रयत्न करके उन्हें मनाने की कोशिश कीजिये,