
एक प्रचलित श्लोक के अनुसार चौदह रत्न निम्नवत हैं:
लक्ष्मीः कौस्तुभपारिजातकसुराधन्वन्तरिश्चन्द्रमाः।
गावः कामदुहा सुरेश्वरगजो रम्भादिदेवांगनाः
अश्वः सप्तमुखो विषं हरिधनुः शंखोमृतं चाम्बुधेः।
रत्नानीह चतुर्दश प्रतिदिनं कुर्यात्सदा मंगलम्।
समुद्र मंथन का रहस्य –
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन क्षीरसागर में हुआ था।जिस पर्वत का उपयोग हुआ उस पर्वत का नाम मंदार है और ये बिहार के बांका ज़िले में स्थित है। इस पर्वत को मंदराचल पर्वत के नाम से भी उल्लेखित किया गया है।
कैसे हुआ मंथन –
स्वयं भगवान श्री विष्णु कच्छप अवतार लेकर मन्दराचल पर्वत को अपने पीठ पर रखकर उसका आधार बन गये। भगवान नारायण ने दानव रूप से दानवों में और देवता रूप से देवताओं में शक्ति का संचार किया। वासुकी नाग को भी गहन निद्रा दे कर उसके कष्ट को हर लिया। देवता वासुकी नाग को मुख की ओर से पकड़ने लगे। इस पर उल्टी बुद्धि वाले दैत्य, असुर, दानवादि ने सोचा कि वासुकी नाग को मुख की ओर से पकड़ने में अवश्य कुछ न कुछ लाभ होगा। उन्होंने देवताओं से कहा कि हम किसी से शक्ति में कम नहीं हैं, हम मुँह की ओर का स्थान लेंगे। तब देवताओं ने वासुकी नाग के पूँछ की ओर का स्थान ले लिया
समुद्र मंथन के 14 रत्नों के नाम
1 कालकूट विष
समुंद्र मंथन में से सबसे पहले कालकूट नाम का विष निकला था। विष को देखकर सारे देवता और असुर काफी डर गए थे। तब संसार की रक्षा करने हेतु भगवान शिव ने उस भयंकर कालकूट विष को ग्रहण कर लिया।
2 कामधेनु
समुंद्र मंथन करने में दूसरे नंबर पर निकली कामधेनु गाय. कामधेनु गांव को ब्रह्मवादी ऋषि मुनियों ने उसे ग्रहण कर लिया।
3 उच्चैश्रवा घोड़ा
समुंद्र मंथन के दौरान तीसरे नंबर पर उच्चैश्रवा घोड़ा निकला। जिसका रंग सफेद था। इस घोड़े को असुरों के राजा बलि ने ग्रहण किया।
4 ऐरावत हाथी
समुंद्र मंथन के क्रम में चौथ के नंबर पर ऐरावत हाथी निकला था। ऐरावत हाथी के 4 बड़े बड़े दाग थे। ऐरावत हाथी को देवराज इंद्र ने अपने पास रख लिया।
5 कौस्तुभ मणि
समुंद्र मंथन के पांचवें क्रम में कौस्तुभ मणि निकली था। जिसे भगवान श्री हरि विष्णु ने अपने हृदय पर धारण कर लिया।
6 कल्पवृक्ष
समुंद्र मंथन के छठे के क्रम में इच्छाओं को पूरा करने वाला कल्पवृक्ष निकला था। जिसे स्वर्ग के देवताओं ने मिलकर स्वर्ग में स्थापित कर दिया।
7 रंभा अप्सरा
समुंद्र मंथन के सातवे क्रम में रंभा नाम की अप्सरा निकली थी जो बहुत ही सुंदर थी। वह सुंदर वस्त्र और आभूषण पहने हुए थी। रंभा अप्सरा को भी देवताओं ने अपने पास रख लिया।
8 देवी लक्ष्मी
समुंद्र मंथन के आठवें स्थान पर निकली थी देवी लक्ष्मी। देवी लक्ष्मी को देखते ही असुर देवता और ऋषि मुनि सभी चाहते थे कि लक्ष्मी उन्हें मिल जाएं। लेकिन देवी लक्ष्मी ने भगवान श्री हरि विष्णु को पति रूप में स्वीकार कर लिया।
9 वारुणी देवी
समुद्र मंथन के नौवें क्रम में निकली थी वारुणी देवी। सभी देवताओं की अनुमति से इसे असुरों ने ले लिया। दोस्तों वारुणी का अर्थ होता है मदिरा यानी नशा।
10 चंद्रमा
समुद्र मंथन के दसवें क्रम में चंद्रमा निकला। जिसे भगवान शिव ने अपने मस्तक पर धारण कर लिया।
11 पारिजात वृक्ष
समुंद्र मंथन के 11वें क्रम में पारिजात वृक्ष निकला। पारिजात वृक्ष की विशेषता थी की इसे छूने से ही शरीर की सारी थकान मिट जाती थी। पारिजात वृक्ष को भी देवताओं ने अपने पास ही रख लिया।
12 पांचजन्य शंख
दोस्तों समुंद्र मंथन से बारहवीं क्रम में पांचजन्य शंख निकला था। इस शंख को भगवान श्री हरि विष्णु ने ग्रहण किया।
13 व 14 भगवान धन्वंतरि व अमृत कलश
दोस्तों समुंद्र मंथन से सबसे अंत में भगवान धन्वंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर निकले थे।
समुंद्र मंथन में 14 नंबर पर अर्थात सबसे अंतिम में अमृत निकला था। इसका अर्थ यह है कि पांच कर्मेंद्रियां, पांच जननेन्द्रियां तथा अन्य चार हैं:- मन,बुद्धि,चित्त और अहंकार। अगर हम इन सभी पर नियंत्रण करने में कामयाब रहे। तभी हम सबको अपने जीवन में परमात्मा की प्राप्ति हो पाएगी।