
भाद्रपद मासे शुक्ल पक्षे: गणेश चतुर्थी गुरुवार आज 13 सितम्बर को 230वां गणेश महोत्सव 11 दिवसीय पर्व का शुभारंभ होगा। चित्रा नक्षत्र, गुरु एवं चन्द्र तुला के होने से गजकेसरी योग बनता है। साथ ही तुला राशि का स्वामी शुक्र होने से भौतिक सुख, समृद्धि प्रदान करेगा। पार्टी एवं मतदाताओं द्वारा विनायक देंगे विधायक। सन् 2006 के बाद 2018 में यह संयोग 12 वर्ष में बना है। भद्रा सूर्योदय से शाम 5.34 मिनट तक रहेगी। स्थापना का सर्वश्रेष्ठ शुभ समय, पूजा-पाठ, आरती प्रसाद वितरण का गोधूलि शाम 5.35 से 6.00 तक शुभ, स्थिर लगन कुंभ। शाम 6.00 से 7.30 तक अमृत, रात्रि 7.30 से 9.00 चर, स्थिर लगन वृषभ रात्रि 9.29 से 11.27 तक। पार्वती माता का आदेश पर अपना सर कलम करा देने वाले विनायक, विश्व परिक्रमा पर माताश्री पार्वती-पिताश्री भगवान शिव की परिक्रमा करके देवताओं में प्रथम पूज्य देवता बने। रिद्धि-सिद्धि, समृद्धि विघ्नविनाशक की पूजा होगी। घर-घर में गणपति विराजमान उपरोक्त शुभ समय में होंगे। गणपति बप्पा मोरिया के जयकारे से देश एवं प्रदेश गुंजायमान होगा। फल, फूल-माला, दूर्वा, मोदक के लड्डू का भोग लगेगा। इस दिन चन्द्र दर्शन से भगवान कृष्णजी को मणि चोरी का कलंक लगा था। इस रात्रि में चन्द्र दर्शन वर्जित रहता है। माता-पिता को भगवान मानकर गणेशजी से यह शिक्षा मिलती है कि माता-पिता ही भगवान है। इन्हीं की पूजा संसार को करना चाहिए। राजनीति में आपसी विरोधाभास होगा। चुनाव में कमल की लड़ाई कमल से होगी।
कैसे करें भगवान गणेश का पूजन
गणेश चतुर्थी की पूजा के लिए एक चौकी पर लाल दुपट्टा बिछा कर उस पर सिंदूर या रोली सज्जित कर आसन बनायें आैर उसके मध्य में गणपति की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें ,और गाय के घी से युक्त दीपक प्रज्वलित करें। ओम देवताभ्यो नमः मंत्र के साथ दीपक का पूजन करें तत्पश्चात हाथ जोड़कर भगवान गणेश की प्रतिमा के सम्मुख आवाहन मुद्रा में खड़े हो कर उनका आवाहन करें। इसके पश्चात् मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा करें। आवाहन एवं प्रतिष्ठापन के पश्चात् भगवान गणेश के आसन के सम्मुख पांच पुष्प अञ्जलि में लेकर छोड़े। अब भगवान को पाद्य यानि चरण धोने हेतु जल समर्पित करें। अब उनको गन्धमिश्रित अर्घ्य जल समर्पित करें, आैर शुद्घ जल से स्नान करायें। अब पञ्चामृत स्नान शुरू करें इसके लिए पयः यानि दूध, दही, घी, शहद आैर शक्कर से स्नान करायें। अब भगवान को सुगन्धित तेल चढ़ायें। एक बार पुन: शुद्ध जल से स्नान करायें। शुद्धोदक स्नान के पश्चात् गणपति को मौलि के रूप में वस्त्र आैर उत्तरीय समर्पित करें। इसके पश्चात् यज्ञोपवीत आैर इत्र अर्पित करें। अब अक्षत, शमी पत्र, आैर तीन अथवा पांच पत्र वाला दूर्वा जिसे दुर्वाङ्कुर कहते हैं उसे चढ़ायें। फिर तिलक करने के लिये सिन्दूर लगायें। धूप एवम् दीप समर्पित करें। नैवेद्य नैवेद्य विशेष रूप से मोदक चढ़ाने के बाद श्री गणेश को ताम्बूल अर्थात पान, सुपारी समर्पित करें। भगवान गणेश को दक्षिणा समर्पित करते हुए उनकी आरती करें।