
ईश्वर काल्पनिक है या हक़ीक़त इस बात से ईश्वर को फर्क नही पड़ता मगर हमे पड़ सकता है। ईश्वर के होने न होने की बहस बहुत ही प्राचीन रही है, लेकिन हर काल में यह नए रूप में सामने आती है। इस बहस का कोई अंत नहीं। यह हमारे संदेह को जितना पुख्ता करती है उतना ही हमारे विश्वास को भी। आस्तिकता और नास्तिकता को कुछ लोग अब एक ही सिक्के के दो पहलू मानने लगे हैं।
मेरे मत अनुसार यदि हम ईश्वर की काल्पनिक भी मान कर चले तो ईश्वर इतना दयालु है कि वो स्वयं अपने होने की खबर आप तक पहुंचा देगा, बस आप की काल्पनिक सोच भी बड़ी गहरी होनी चाइये। यदि आप खुद की बात पर ही संदेहास्पद है तो आप कहीं नही पहुंच पाएंगे।
ईश्वर तो है, ईश्वर की परम सत्ता भी है। अब आपके लिए ईश्वर का होना न होना ये आप पर निर्भर है। ईश्वर तो स्वयं का अनुभव है। इसको दूसरे के अनुभव से या दूसरे के कहने पर नही जान सकते। ईश्वर को तर्क या विज्ञान द्वारा नही जाना है सकता।
बहुत दिन पहले मैंने एक कहानी पड़ी थी आज आपसे शेयर करती हूं –
एक राजा राजभवन में नरम, मखमली बिछोने के पलंग पर लेटकर ईश्वर की खोज कर रहा था। उसका एक मंत्री यह सब देख रहा था। अचानक वह मंत्री खड़ा हुआ और घड़े में हाथ डालकर जोर-जोर से हाथ हिलाने लगा, राजा ने पूछा क्या खोज रहे हो? मंत्री ने कहा, ‘‘राजन, हाथी खोज रहा हूँ, राजा ने कहा- तुम मुर्ख हो! घड़े में हाथी कैसे मिलेगा? मंत्री हंसने लगा और बोला, ‘हे राजन, तू जिस चित्त दशा में ईश्वर को खोज रहा है वह घड़े में हाथी खोजने से भी ज्यादा विचित्र नहीं है
इसी तरह हम भी बिस्तर में लेट कर मोबाइल हाथ मे लेकर पूंछे की ईश्वर काल्पनिक है या हक़ीक़त है तो उस परमेश्वर को कैसे जान सकते हैं। यदि ऐसा होता तो बुद्ध को राजपाट छोड़ कर जाना न पड़ता, गुरु शंकराचार्य की भटकना न पड़ता। फिर से कहूं कि ईश्वर तो निज अनुभूति है। हमको स्वयं उठना पड़ेगा उसकी खोज के लिए। उस सत्ता का अनुभव करने के लिए स्वयं मन की गहराइयों में उतारना पड़ता है, तभी ज्ञात होता है कि उस परमात्मा को बाहर नही देखा जा सकता वो तो भीतर है।