
कहाँ जा रही हो, रात के ९ बज रहे हैं, रात में लड़कियों का निकलना सही नहीं है… क्या करोगी ज्यादा पढ़-लिख कर, आखिर में रोटी ही तो बनाना है… बेटी, दुपट्टा आगे से डाला करो..सर पर पल्लू डाला करो… अरे, तुम बाल क्यों छोटे करवा रही हो, बाल तो लड़कियों का गहना है… सुनो, बहु बार-बार मायके मत जाया करो… लड़कियों को कितना भी समझ लो, समझ ही नहीं आता.. लड़को के साथ मत घुमा करो, वो दोस्त है तो क्या हुआ… आखिर तुम एक लड़की हो..
for women rights, लड़कियों को हमेशा इसी तरह के ताने सुनना पड़ते हैं, हम लड़कियों में कितना भी टैलेंट हो, कितनी भी समझदारी हो, आखिर में लड़कियों को अपने घर पर और बाद में ससुराल में सास-ससुर के ताने किसी न किसी बात पर सुनने ही पड़ते हैं.
हमारे समाज में आज भी कहीं न कहीं Indian Women का स्थान कुछ इंच नीचे ही है. कहने आज लड़कियां कंधे से कंधे मिलाकर चल रही है. लेकिन पुरुष प्रधान समाज में लड़कियों या महिलाओं को अभी अभी वो दर्जा नहीं दिया जाता जो एक पुरुष का होता है.
पुरुष ही नहीं कहीं-कहीं कुछ महिलाएं भी है जो खुद एक महिला होने के बाबजूद दूसरी महिलाओं या लड़कियों को ताने मारने से पीछे नहीं हटती.
बार-बार उनको किसी न किसी बात से ताने मारके लड़की होने का अहसास दिला ही देती है.
ऐसी महिला को कोई मतलब नहीं की उन्हें पैदा करने वाली भी एक औरत थी. उनको शिक्षा देने वाली भी एक औरत थी. उनको पालने वाली भी एक औरत थी.
कहने को बड़ी बड़ी बातें महिलाओं के सपोर्ट में कही जाती हैं. इतिहास की famous women की कहानियाँ को सुनाया जाता है. झाँसी की रानी तस्वीर अपने घर या कार्यालय में लगाई जाती है.
मगर जब अपने ही घर की लड़कियों को बात की जाती है तो उनको बंदिशों और परदों में रखा जाता है.
वो ये भूल जाते हैं की लड़कियों की अपनी भी ख्वाहिशें होती है, अपनी एक मंज़िल होती है.
Women rights में, उनके विकास में सिर्फ महिलाएं ही सहयोगी हो सकती हैं. यदि महिलाएं ही महिलाओं पर पाबन्दी रखेंगी तो महिलाओं का विकास होना मुमकिन नहीं.
जितना अधिकार एक पुरुष को है उतना ही हक़ एक महिला को भी होना चाहिए. ये अधिकार केवल कागजों में नहीं बल्कि भावनाओं में भी होना जरुरी है.